विदेश मंत्री और भाजपा की कद्दावर नेता, एमपी के विदिशा से सांसद सुषमा स्वराज ने कहा है कि वह अगला लोकसभा चुनाव नहीं लड़ना चाहतीं.
विदेश मंत्री और भाजपा की कद्दावर नेता, एमपी के विदिशा से सांसद Sushma Swaraj Lok Sabha election 2019 सुषमा स्वराज ने कहा है कि वह अगला लोकसभा चुनाव नहीं लड़ना चाहतीं. लेकिन पार्टी फैसला करती है तो वह इस पर विचार करेंगी. इसके बाद सवाल उठने लगे हैं कि वह अपनी बीमारी की वजह से ऐसा कह रही हैं या कोई और पीड़ा है. Sushma Swaraj Lok Sabha election 2019 retirement announcement analysis
एक ट्वीट के जवाब में उन्होंने कहा कि वह सक्रिय राजनीति नहीं छोड़ रही हैं, स्वास्थ्य संबंधी कारणों से वह चुनाव नहीं लड़ना चाहतीं. ट्वीट कर अपनी समस्या बताने वालों की मदद करके सुषमा ने एक नजीर स्थापित की थी.
You are right, Swapan. I am not retiring from politics. It is just that I am not contesting the next Lok Sabha election due to my health issues. https://t.co/jF5GpPvVwU
— Sushma Swaraj (@SushmaSwaraj) 20 November 2018
2016 में एम्स में उनका किडनी ट्रांसप्लांट किया गया था. महीनों तक वह कामकाज से दूर थीं लेकिन ट्वीट करने वालों को तब भी मदद मिलती रही. फिर उन्होंने इतना बड़ा फैसला कैसे ले लिया. वह भी पार्टी से बिना पूछे और बिना बताए. इसके पीछे स्वास्थ्य कारण ही हैं.
जेपी आंदोलन से अपना राजनैतिक सफर शुरू करने वाली सुषमा स्वराज 25 साल की उम्र में हरियाणा के देवीलाल मंत्रिमंडल में मंत्री बन गई थीं. 80 के दशक में भाजपा के गठन के दौरान वह भाजपा में शामिल हो गईं. इसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. वह दिल्ली की मुख्यमंत्री भी बनीं. सुषमा 2009 से 2014 तक लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष रहीं.
अंग्रेजी और हिंदी में समान पकड़ रखने वाली सुषमा का भाषण सुनने के लिए लोग इंतजार करते थे. चुनाव प्रचार के दौरान भी उनकी भारी डिमांड रहती थी. आज भी जब वह बोलने खड़ी होती हैं तो विरोधियों को अपने तर्कों से चुप करा देती हैं. कई लोग यह भी कहते हैं कि अटल के बाद अगर कोई अपने भाषणों से मंत्रमुग्ध करा देता है तो वह सुषमा स्वराज ही हैं.
सुषमा ने सोनिया गांधी के खिलाफ कर्नाटक के बेल्लारी से लोकसभा का चुनाव लड़ा था लेकिन हार गई थीं. 2004 में एक बार फिर वह सोनिया के खिलाफ खड़ी हो गईं जब यूपीए को बहुमत मिलने के बाद सोनिया को पीएम बनाने की बात उठने लगी. तब सुषमा ने कहा था कि अगर विदेशी मूल की महिला को पीएम बनाया जाता है तो वह अपना सर मुड़ा लेंगी, सफेद वस्त्र पहनेंगी, जमीन पर सोएंगी और एक भिक्षुणी का जीवन जीएंगी. कहा जाता है कि बढ़ते विरोध को देखते हुए सोनिया ने खुद मनमोहन का नाम आगे कर उन्हें प्रधानमंत्री बनवा दिया था.
2014 में मोदी सरकार के गठन के बाद उन्हें विदेश मंत्रालय की जिम्मेदारी दी गई. वह देश की पहली महिला विदेश मंत्री हैं. ऐसा माना जाता है कि महत्वपू्र्ण होते हुए भी यह मंत्रालय जनता से सीधे नहीं जुड़ा है. विदेश मामलों में मंत्रालय से ज्यादा पीएमओ की रुचि ज्यादा रहती है. स्वास्थ्य कारणों की वजह से कई बार वह मंत्रालय में समय नहीं दे पाईं लेकिन ट्विट करने के बाद जिस तरह से लोगों को विदेश मंत्रालय की, खासतौर से पासपोर्ट के मामलों में जो राहत मिली उसे नजीर माना जाता है. राजनीतिक समीक्षक मानते हैं कि मानव संसाधन जैसा मंत्रालय सुषमा की जगह स्मृति ईरानी को देकर संदेश साफ कर दिया गया था.
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